इमसाल फ़स्ल-ए-गुल में वो फिर चाक हो गए
अगले बरस के थे जो गरेबाँ सिए हुए
Wasi Shah
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Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
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मज़ा पड़ा है क़नाअत का अहद-ए-तिफ़्ली से
ऐ जुनूँ तू ही छुड़ाए तो छुटूँ इस क़ैद से
इश्क़ कुछ आप पे मौक़ूफ़ नहीं ख़ुश रहिए
हम जो कहते हैं सरासर है ग़लत
अपने मरने का अगर रंज मुझे है तो ये है
दीवानों से कह दो कि चली बाद-ए-बहारी
आफ़त शब-ए-तन्हाई की टल जाए तो अच्छा
हैं ये सारे जीते-जी के वास्ते
जलन दिल की लिक्खें जो हम दिल-जले
यार आया है अहवाल-ए-दिल-ए-ज़ार दिखाओ
आदमी पहचाना जाता है क़याफ़ा देख कर
लैला मजनूँ का रटती है नाम