हम जो कहते हैं सरासर है ग़लत
सब बजा आप जो फ़रमाइएगा
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फेर लाता है ख़त-ए-शौक़ मिरा हो के तबाह
बस अब आप तशरीफ़ ले जाइए
सदमे गुज़रे ईज़ा गुज़री
ज़ुल्फ़ों की तरह उम्र बसर हो गई अपनी
हैं ये सारे जीते-जी के वास्ते
क्यूँ-कर न लाए रंग गुलिस्ताँ नए नए
क़ैस समझा मिरी लैला की सवारी आई
टूटे बुत मस्जिद बनी मिस्मार बुत-ख़ाना हुआ
गले लगाएँ बलाएँ लें तुम को प्यार करें
लाला-रूयों से कब फ़राग़ रहा
दिल-लगी ग़ैरों से बे-जा है मिरी जाँ छोड़ दे
चढ़ी तेरे बीमार-ए-फ़ुर्क़त को तब है