बस अब आप तशरीफ़ ले जाइए
जो गुज़रेगी मुझ पर गुज़र जाएगी
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क्या सुन चुके हैं आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहार हाथ
हों वो काफ़िर कि मुसलामानों ने अक्सर मुझ को
मुँह न ढाँको अब तो सूरत देख ली
मय पिला ऐसी कि साक़ी न रहे होश मुझे
काबे को जाता किस लिए हिन्दोस्तान से मैं
क्या मिला अर्ज़-ए-मुद्दआ कर के
क्यूँ-कर न लाए रंग गुलिस्ताँ नए नए
चलती रही उस कूचे में तलवार हमेशा
आँख से क़त्ल करे लब से जलाए मुर्दे
लैला मजनूँ का रटती है नाम
अपने मरने का अगर रंज मुझे है तो ये है
उदास देख के मुझ को चमन दिखाता है