अपने मरने का अगर रंज मुझे है तो ये है
कौन उठाएगा तिरी जौर ओ जफ़ा मेरे बाद
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रुतबा-ए-कुफ़्र है किस बात में कम ईमाँ से
बस अब आप तशरीफ़ ले जाइए
मय पिला ऐसी कि साक़ी न रहे होश मुझे
बरहना देख कर आशिक़ में जान-ए-ताज़ा आती है
मुझ बला-नोश को तलछट भी है काफ़ी साक़ी
ज़ुल्फ़ों की तरह उम्र बसर हो गई अपनी
बुत करें आरज़ू ख़ुदाई की
उदास देख के मुझ को चमन दिखाता है
परों को खोल दे ज़ालिम जो बंद करता है
हम जो कहते हैं सरासर है ग़लत
ऐ शब-ए-फ़ुर्क़त न कर मुझ पर अज़ाब
जलन दिल की लिक्खें जो हम दिल-जले