ऐ परी हुस्न तिरा रौनक़-ए-हिंदुस्ताँ है
हुस्न-ए-यूसुफ़ है फ़क़त मिस्र के बाज़ार का रूप
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दीद-ए-लैला के लिए दीदा-ए-मजनूँ है ज़रूर
शौक़-ए-नज़्ज़ारा-ए-दीदार में तेरे हमदम
गले लगाएँ बलाएँ लें तुम को प्यार करें
अपने मरने का अगर रंज मुझे है तो ये है
सदमे गुज़रे ईज़ा गुज़री
दिल किस से लगाऊँ कहीं दिलबर नहीं मिलता
चलती रही उस कूचे में तलवार हमेशा
लाएगी गर्दिश में तुझ को भी मिरी आवारगी
ज़ुल्फ़ों की तरह उम्र बसर हो गई अपनी
लाला-रूयों से कब फ़राग़ रहा
पाँव के हाथ से गर्दिश ही रही मुझ को मुदाम
मुँह न ढाँको अब तो सूरत देख ली