आँख से क़त्ल करे लब से जलाए मुर्दे
शोबदा-बाज़ का अदना सा करिश्मा देखो
Rahat Indori
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लाएगी गर्दिश में तुझ को भी मिरी आवारगी
किसी का कोई मर जाए हमारे घर में मातम है
आफ़त शब-ए-तन्हाई की टल जाए तो अच्छा
मज़ा पड़ा है क़नाअत का अहद-ए-तिफ़्ली से
उल्फ़त न करूँगा अब किसी की
दीद-ए-गुलज़ार-ए-जहाँ क्यूँ न करें सैर तो है
काबे को जाता किस लिए हिन्दोस्तान से मैं
आ अंदलीब मिल के करें आह-ओ-ज़ारियाँ
शौक़-ए-नज़्ज़ारा-ए-दीदार में तेरे हमदम
उदास देख के मुझ को चमन दिखाता है
नाज़-ए-बेजा उठाइए किस से