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वक़ार-ए-शाह-ए-ज़विल-इक्तदार देख चुके - रिन्द लखनवी कविता - Darsaal

वक़ार-ए-शाह-ए-ज़विल-इक्तदार देख चुके

वक़ार-ए-शाह-ए-ज़विल-इक्तदार देख चुके

ज़ुहूर-ए-क़ुदरत-ए-परवरदिगार देख चुके

नक़ाब खोल के रू-ए-निगार देख चुके

कुछ एक बार नहीं लाख बार देख चुके

जहाँ के ऐश-ओ-ग़म-ए-रोज़गार देख चुके

जो देखता था सो पर्वरदिगार देख चुके

वो जीते-जी हुए ईज़ा से नज़'अ की आगाह

जो सदमे तेरे शब-ए-इंतिज़ार देख चुके

ख़ुदा के वास्ते अब छोड़ जिस्म-ए-ख़ाकी को

अज़िय्यतें बहुत ओ जान-ए-ज़ार देख चुके

जुनूँ ने ख़ूब दिखाई बहार-ए-जेब-ओ-कनार

हवा में उड़ते हुए तार तार देख चुके

वो क़ौल ग़ैर को देते हैं लेते हैं इक़रार

तिरी तरफ़ को दिल-ए-बे-क़रार देख चुके

यक़ीं है अब न करें मेरे क़त्ल में ताख़ीर

फ़साँ चटा के वो ख़ंजर की धार देख चुके

न डाल पेच में ख़ातिर न अब परेशाँ कर

बहुत से दर्द-ए-सर ओ ज़ुल्फ़-ए-यार देख चुके

करे वो ज़ीनत-ए-फ़ितराक या हलाल करे

कहीं इधर को भी वो शहसवार देख चुके

न पहुँचा एक भी ज़र्रा तुम्हारे दामन तक

उड़ा के ख़ाक भी हम ख़ाकसार देख चुके

हुए सफ़ेद-ओ-सियाह-ए-जहान से वाक़िफ़

बहुत सी गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार देख चुके

किए हैं ख़ूब से नज़्ज़ारे बाग़-ए-हस्ती के

जहाँ को बस मिरे पर्वरदिगार देख चुके

इलाही तू ने शरफ़ जिस को आसमाँ पे दिया

वो सर-ज़मीन भी ये ख़ाकसार देख चुके

नहीं है एक में हिम्मत ये वो ज़माना है

ग़रीब देख चुके माल-दार देख चुके

तही है नश्शा-ए-उल्फ़त से ये ख़ुम-ए-गर्दूं

शराबें पी के तिरे बादा-ख़्वार देख चुके

कुलाह-ए-कज को हटा कर दिखा दिया अबरू

क़सम अली की खिंची ज़ुल-फ़िक़ार देख चुके

भला वो ख़ाक करें क़स्द बज़्म-ए-हस्ती का

जो लोग राहत-ए-कुंज-मज़ार देख चुके

हुआ यक़ीन फ़रिश्तों को ख़ाकसारी का

कफ़न लिखा जो ये ख़त्त-ए-ग़ुबार देख चुके

अमामे-बाज़ जो ये कंठे घट्टे वाले हैं

जहाँ में जैसे हैं ज़ी-ए'तिबार देख चुके

अठाई-गीरे हैं सब जाल-साज़ हैं मुफ़सिद

कुछ एक दो नहीं हम तो हज़ार देख चुके

सिवाए ज़ात-ए-ख़ुदा सब के वास्ते है फ़ना

सबात-ए-हस्ती-ए-ना-पाएदार देख चुके

क़ुसूर-ए-बख़्त है फिर जाएँ अब अगर महरूम

दर-ए-करीम तो उम्मीद-वार देख चुके

हज़ार-शुक्र कि बाक़ी नहीं कोई हसरत

बहार तेरी भी ओ गुल-एज़ार देख चुके

नजफ़ को ले गए मय्यत फ़रिश्ता-ए-नक़्क़ाल

अज़ीज़ खोल के मेरा मज़ार देख चुके

फ़क़ीर भी मुतरस्सिद निगाह-ए-लुत्फ़ का है

इधर भी 'रिन्द' मिरा शहरयार देख चुके

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In Hindi By Famous Poet Rind Lakhnavi. is written by Rind Lakhnavi. Complete Poem in Hindi by Rind Lakhnavi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.