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तू आप को पोशीदा ओ इख़्फ़ा न समझना - रिन्द लखनवी कविता - Darsaal

तू आप को पोशीदा ओ इख़्फ़ा न समझना

तू आप को पोशीदा ओ इख़्फ़ा न समझना

मैं देख रहा हूँ मुझे अंधा न समझना

कम शेर-ए-ज़ियाँ से मिरा रुत्बा न समझना

कुत्ता हूँ अली का सग-ए-दुनिया न समझना

गो ज़ार हुआ हूँ मगर इमदाद-ए-जुनूँ से

है देव की ताक़त मुझे मुर्दा न समझना

हम-राह मिरे रहती है हर दम मदद-ए-ग़ैब

लाखों पे हूँ भारी मुझे तन्हा न समझना

बज़्म-ए-ग़म-ए-शप्पीर में जो चश्म से निकले

हर अश्क को तस्बीह का इक दाना समझना

जो दिल कि मुबर्रा हो मोहब्बत से जहाँ की

उस दिल को दिला यार का काशाना समझना

नामा जो लिखा है उसे रख छोड़ियो साहिब

वो ख़त्त-ए-ग़ुलामी है नविश्ता न समझना

काफ़िर हूँ न फूँकूँ जो तिरे काबा में ऐ शैख़

नाक़ूस बग़ल में है मुसल्ला न समझना

दीदार दिखा दीजिए ग़श आएँ तो आएँ

आशिक़ हूँ मैं आशिक़ मुझे मूसा न समझना

रखना न तवक़्क़ो दिल-ए-नादाँ तू किसी से

उस वक़्त में अपनों को भी बेगाना समझना

हासिल नहीं समझाने से नासेह तू समझ तो

क्या समझे भला ये दिल-ए-दीवाना समझना

बहका हुआ आशिक़ नज़र आ जाए जो कोई

इस चश्म-ए-फ़ुसूँ-साज़ का दीवाना समझना

चाहूँ तो निकल जाऊँ अभी पेच से तेरे

उलझा मुझे ओ ज़ुल्फ़-ए-चलीपा न समझना

सर कट के जो क़दमों पे गिरे राह-ए-वफ़ा में

ये भी मदद-ए-हिम्मत-ए-मर्दाना समझना

सेह्हत तिरी मुमकिन नहीं सुन रख दिल-ए-बीमार

ये गोरकन आया है मसीहा न समझना

हर हाल में ख़ुरसंद हूँ तुम ख़ुश हो कि ना-ख़ुश

बंदा हूँ मुझे आशिक़-ए-शैदा न समझना

पिलवा दे मय-ए-होश-रुबा देख मिरा ज़र्फ़

साक़ी जो बहक जाऊँ तो दीवाना समझना

आ जाए कोई ढेर अगर पावँ के नीचे

ऐ शम्-रुख़ो मरक़द-ए-परवाना समझना

देखो किसी चेहरे पे जो गेसू कोई बल-दार

अफ़ई है उसे ज़ुल्फ़-ए-चलीपा न समझना

जूया है अगर रुत्बा-ए-आली का जहाँ में

अदना से भी ख़ुद को कभी आला न समझना

ऐ 'रिन्द' न टिकना कभी अर्बाब-ए-वरा पास

मिल बैठना उस से जिसे रिंदाना समझना

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In Hindi By Famous Poet Rind Lakhnavi. is written by Rind Lakhnavi. Complete Poem in Hindi by Rind Lakhnavi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.