Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_cade536723c408c4c672e5029f6dd6f1, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
नहीं क़ौल से फ़ेल तेरे मुताबिक़ - रिन्द लखनवी कविता - Darsaal

नहीं क़ौल से फ़ेल तेरे मुताबिक़

नहीं क़ौल से फ़ेल तेरे मुताबिक़

कहूँ किस तरह तुझ को ऐ यार सादिक़

न जन्नत के क़ाबिल न दोज़ख़ के लाएक़

मुझे क्यूँ किया ख़ल्क़ ऐ मेरे ख़ालिक़

हुए हिज्र में वो मर्ज़ मुझ को लाहिक़

रहे दंग जिस में अतिब्बा-ए-हाज़िक़

भरोसा करम पर है हम आसियों को

ग़ज़ब पर समझते हैं रहम उस का फ़ाइक़

फ़क़त कुनह ज़ात उस की अब तक न समझे

हुए मुन्कशिफ़ और सारे दक़ाएक़

झगड़ लेंगे आपस में शैख़ ओ बरहमन

तुझे क्या बखेड़ों से ओ मर्द-ए-आशिक़

जो ये उस की रहमत की तुग़्यानीयाँ हैं

कुजा ज़ोहद-ए-ज़ाहिद कहाँ फ़िस्क़-ए-फ़ासिक़

किया नफ़्स को मुझ पे क्यूँ तू ने ग़ालिब

न था क्या तिरी बंदगी के में लाएक़

न रखना मुझे अपनी रहमत से महरूम

तिरी ज़ात से है ये उम्मीद-ए-वासिक़

न ताब आएगी हुस्न की तेरे ऐ दोस्त

मैं मूसा नहीं हूँ जो जल्वे का शाइक़

तजर्रुद का आलम तुझे क्या बुरा था

हुआ किस लिए पा-ए-बंद-ए-अलाएक

शिकायत का फ़िक़रा ज़बाँ तक न आया

बहर-हाल करता रहा शुक्र-ए-ख़ालिक़

सर ओ चश्म से मैं बजा लाऊँ साहिब

जो ख़िदमत कोई होवे बंदे के लाएक़

भला किस से बहलाऊँ दिल इस चमन में

न सुम्बुल न नस्रीं न गुल न शक़ाइक़

रूलाते हो आशिक़ को बे-वज्ह-ओ-बाइस

हँसेंगी मिरी जान तुम पर ख़लाइक़

किए मोजज़े हुस्न ने दोनों यकजा

शब-ए-तीरा गेसू जबीं सुब्ह-ए-सादिक़

कहा सुन के अफ़्साना-ए-क़ैस-ओ-लैला

अबस करते हो हाल में ज़िक्र-ए-साबिक़

गया वो ज़माना वो लोग उड़ गए सब

न माशूक़ वैसे रहे अब न आशिक़

शुनीदेम नाम-ओ-निशानश नदीदेम

चू अन्क़ास्त मादूम यार-ए-मुआफ़िक़

मिरी जान मुद्दत से मरता हूँ तुझ पर

तिरे चाँद से मुँह का आशिक़ हूँ आशिक़

हुआ रश्क-ए-लैला की फ़ुर्क़त में मजनूँ

मिरा हाल और क़ैस का है मुताबिक़

अबस फ़ौक़ देता है तू ख़ुद को नादाँ

किया एक को एक पर उस ने फ़ाइक़

वो मुंशी बने क़ुदरत-ए-हक़ तो देखो

जो मकतब में पढ़ते थे इनशा-ए-फ़ाइक़

दुआ है यही और यही है तमन्ना

नजफ़ में मरे जा के ये 'रिन्द'-ए-फ़ासिक़

(648) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Rind Lakhnavi. is written by Rind Lakhnavi. Complete Poem in Hindi by Rind Lakhnavi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.