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हैरान सी है भचक रही है - रिन्द लखनवी कविता - Darsaal

हैरान सी है भचक रही है

हैरान सी है भचक रही है

नर्गिस किस गुल को तक रही है

आई है बहार ग़ुंचे चटके

क्या फूलों की बू महक रही है

मय-ख़ाने पे मेंह बरस रहा है

बिजली कैसी चमक रही है

बाक़ी है असर अभी जुनूँ का

सौदा तो गया है झक रही है

पूछो न जलन का दिल के अहवाल

इक आग पड़ी दहक रही है

नर्गिस को तो आँख उठा के देखो

किस यास से तुम को तक रही है

लैला मजनूँ का रटती है नाम

दीवानी हुई है बक रही है

पैग़ाम-ए-बहार आन पहुँचा

बुलबुल क्या क्या चहक रही है

मिज़्गाँ का जो दिल में है तसव्वुर

इक फाँस पड़ी खटक रही है

हो जाएगा राम रफ़्ता रफ़्ता

वहशत तो मिटी झिजक रही है

बाक़ी जो ये जान-ए-ना-तवाँ है

क्या ज़िंदों में है सिसक रही है

आने की तिरे ही मुंतज़िर है

ओ मौत कहाँ तू थक रही है

क्या शोख़ है वो सुनहरी रंगत

कंदन की तरह दमक रही है

रू-ए-रंगीं अरक़-फ़िशाँ है

शबनम गुल से टपक रही है

हम 'रिन्द' हैं बज़्म अपनी किस रात

बे-जाम-ए-मय ओ गज़क रही है

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In Hindi By Famous Poet Rind Lakhnavi. is written by Rind Lakhnavi. Complete Poem in Hindi by Rind Lakhnavi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.