अल्लाह के भी घर से है कू-ए-बुताँ अज़ीज़
अल्लाह के भी घर से है कू-ए-बुताँ अज़ीज़
का'बे से भी ज़ियादा है हिन्दोस्ताँ अज़ीज़
ये मुश्त-ए-ख़ाक हो कहीं मक़्बूल-ए-बारगाह
मिट्टी हमारी कर भी चुके आसमाँ अज़ीज़
शिकवे की जा-ए-ग़ैर से बाक़ी नहीं रही
दुश्मन से भी ज़ियादा हैं ख़ूबान-ए-जाँ अज़ीज़
हस्ती अदम से लाई है किस मुल्क-ए-ग़ैर में
कोई न आश्ना है हमारा न याँ अज़ीज़
ऐ 'रिंद' अपने अहद में क़द्र-ए-सुख़न नहीं
हर अस्र में वगरना थे अहल-ए-ज़बाँ अज़ीज़
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