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अदू ग़ैर ने तुझ को दिलबर बनाया - रिन्द लखनवी कविता - Darsaal

अदू ग़ैर ने तुझ को दिलबर बनाया

अदू ग़ैर ने तुझ को दिलबर बनाया

कोई जोड़ मुझ पर मुक़र्रर बनाया

कोई सर्व रखता न था रास्त ये है

तिरे क़द को मैं ने सनोबर बनाया

किया मैं ने जल्लाद उसे अपने हक़ में

सितम सहते सहते सितमगर बनाया

न गिनता था कोई हसीनों में ओ बुत

तुझे दे के दिल मैं ने दिलबर बनाया

शकर-लब कहा मैं ने कड़वे हुए तुम

अबस मुँह को मुझ से सितमगर बनाया

अनासिर से ख़ालिक़ ने ख़िल्क़त बनाई

तुझे नूर से हूर-पैकर बनाया

तिरा आशिक़-ए-ज़ार रोज़-ए-अज़ल से

बनाया मुझे ओ सितमगर बनाया

भला क्या जवाब इस का देगा तू क़ातिल

अगर ख़ून का मैं ने महज़र बनाया

मिरी अक़्ल हैराँ है बार-ए-इलाहा

तिलिस्मात-ए-दुनिया को क्यूँ-कर बनाया

पड़ी जान उड़ने लगा मेरे ईसा

रुई का जो तू ने कबूतर बनाया

हमा-वक़्त मुमकिन नहीं वस्ल-ए-दिलबर

हँसी-खेल किया जान-ए-मुज़्तर बनाया

वो हूँ साहिब-ए-ज़र्फ़ हरगिज़ न छलका

अगर ख़ाक का मेरी साग़र बनाया

ख़याल-ए-दहन ने किया तंग मुझ को

कमर के तसव्वुर ने लाग़र बनाया

घुले सोज़-ए-फ़ुर्क़त में उस शम्अ-रू के

ये हाल अपना क्यूँ 'रिन्द' जल कर बनाया

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In Hindi By Famous Poet Rind Lakhnavi. is written by Rind Lakhnavi. Complete Poem in Hindi by Rind Lakhnavi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.