रिन्द लखनवी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का रिन्द लखनवी (page 1)
नाम | रिन्द लखनवी |
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अंग्रेज़ी नाम | Rind Lakhnavi |
जन्म की तारीख | 1797 |
मौत की तिथि | 1857 |
ज़ुल्फ़ों की तरह उम्र बसर हो गई अपनी
वादे पे तुम न आए तो कुछ हम न मर गए
उदास देख के मुझ को चमन दिखाता है
टूटे बुत मस्जिद बनी मिस्मार बुत-ख़ाना हुआ
था मुक़द्दम इश्क़-ए-बुत इस्लाम पर तिफ़्ली में भी
तबीअ'त को होगा क़लक़ चंद रोज़
शौक़-ए-नज़्ज़ारा-ए-दीदार में तेरे हमदम
रुतबा-ए-कुफ़्र है किस बात में कम ईमाँ से
रिंदान-ए-इश्क़ छुट गए मज़हब की क़ैद से
रास्ता रोक के कह लूँगा जो कहना है मुझे
क़ैस समझा मिरी लैला की सवारी आई
फिर वही कुंज-ए-क़फ़स है वही सय्याद का घर
फिर वही कुंज-ए-क़फ़स है वही सय्याद का घर
फेर लाता है ख़त-ए-शौक़ मिरा हो के तबाह
पास-ए-दीं कुफ़्र में भी था मलहूज़
परों को खोल दे ज़ालिम जो बंद करता है
पाँव के हाथ से गर्दिश ही रही मुझ को मुदाम
नाज़-ए-बेजा उठाइए किस से
मुज़्दा-बाद ऐ बादा-ख़्वारो दौर-ए-वाइज़ हो चुका
मज़ा पड़ा है क़नाअत का अहद-ए-तिफ़्ली से
मौत आ जाए क़ैद में सय्याद
मय-कश हूँ वो कि पूछता हूँ उठ के हश्र में
मय पिला ऐसी कि साक़ी न रहे होश मुझे
लैला मजनूँ का रटती है नाम
लाएगी गर्दिश में तुझ को भी मिरी आवारगी
क्या सुन चुके हैं आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहार हाथ
क्या मिला अर्ज़-ए-मुद्दआ कर के
किसी का कोई मर जाए हमारे घर में मातम है
खुली है कुंज-ए-क़फ़स में मिरी ज़बाँ सय्याद
ख़ाक छनवाती है दीवानों से अपने मुद्दतों