अब इस मक़ाम पे लाई है ज़िंदगी मुझ को
कि चाहता हूँ तुझे भी भुला दिया जाए
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लम्हा लम्हा शुमार करता हूँ
अगर क़दम तिरे मय-कश का लड़खड़ा जाए
नादान दिल-फ़रेब मोहब्बत न खा कभी
रहा असीर कई साल नक़्श-ए-पा की तरह
तू मिरी बात का जवाब न दे
हुए जब से मोहब्बत-आश्ना हम
ना-आश्ना-ए-दर्द नहीं बेवफ़ा नहीं
सफ़र-ए-ज़िंदगी नहीं आसाँ
मसर्रतों का खिला है हर एक सम्त चमन
मुझे भी यूँ तो बड़ी आरज़ू है जीने की
जी रहा हूँ कुछ इस तरह जैसे
दिल में कोई ख़ुशी नहीं लेकिन