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मसर्रतों का खिला है हर एक सम्त चमन - रिफ़अत सुलतान कविता - Darsaal

मसर्रतों का खिला है हर एक सम्त चमन

मसर्रतों का खिला है हर एक सम्त चमन

मगर ये दिल कि है फिर भी क़तील-ए-रंज-ओ-मेहन

बड़े सुकून से ज़ुल्फ़ें सँवारने वाले

किसी की ज़ीस्त न बन जाए मुस्तक़िल उलझन

मिरे जुनूँ पे रहे लोग मो'तरिज़ लेकिन

न देखे आह किसी ने तिरे ख़ुतूत-ए-बदन

अभी तो हर्फ़-ए-तमन्ना का ज़िक्र तक भी नहीं

अभी न डाल ख़ुदा के लिए जबीं पे शिकन

दिल-ए-फ़सुर्दा में यूँ तेरी याद आई है

शब-ए-सियाह में जिस तरह रौशनी की किरन

ये किस ने झूम के मस्ती में ली है अंगड़ाई

फ़ुसूँ-तराज़ है ये किस का रंग-ए-पैराहन

गुज़र गया है ज़माना मगर मुझे 'रिफ़अत'

है अब भी याद किसी की निगाह-ए-तौबा-ए-शिकन

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In Hindi By Famous Poet Rifat Sultan. is written by Rifat Sultan. Complete Poem in Hindi by Rifat Sultan. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.