जब से आया हूँ तेरे गाँव में
जब से आया हूँ तेरे गाँव में
रंग ही रंग हैं फ़ज़ाओं में
आ कि दुख सुख की कोई बात करें
बैठ कर शीशमों की छाँव में
मैं भी करता हूँ ज़ब्त की कोशिश
तो भी तख़फ़ीफ़ कर अदाओं में
वो तिरा दफ़अ'तन बिछड़ जाना
वो मिरा देखना ख़लाओं में
हो अगर कोई गोश-बर-आवाज़
इक ख़मोशी भी है सदाओं में
यही मेरे लिए ग़नीमत है
साँस ले लूँ खुली फ़ज़ाओं में
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