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जब नशात-ए-अलम नहीं होता - रिफ़अत सुलतान कविता - Darsaal

जब नशात-ए-अलम नहीं होता

जब नशात-ए-अलम नहीं होता

जाम-ए-जम जाम-ए-जम नहीं होता

जाने क्यूँ तेरी बे-रुख़ी से भी

दिल को अब कोई ग़म नहीं होता

आ गया हूँ तिरे हुज़ूर मगर

फ़ासला फिर भी कम नहीं होता

वो मसर्रत तलाश करता है

जिस को इरफ़ान-ए-ग़म नहीं होता

उम्र भर तुझ को देखने पर भी

ज़ौक़-ए-नज़्ज़ारा कम नहीं होता

क्या कहूँ दिल को क्या हुआ 'रिफ़अत'

दामन-ए-चश्म नम नहीं होता

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In Hindi By Famous Poet Rifat Sultan. is written by Rifat Sultan. Complete Poem in Hindi by Rifat Sultan. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.