होते हैं ख़त्म अब ये लम्हात ज़िंदगी के

होते हैं ख़त्म अब ये लम्हात ज़िंदगी के

मेहमान हैं जहाँ में हम और दो घड़ी के

ऐ बे-नियाज़ मेरा सज्दा क़ुबूल कर ले

मैं जानता नहीं हूँ आदाब बंदगी के

साँसों के तार तुम ने ग़फ़लत से तोड़ डाले

नग़्मे सुनोगे अब क्यूँकर साज़-ए-ज़िंदगी के

अब ख़ैरियत नहीं है तंज़ीम-ए-दो-जहाँ की

तेवर बता रहे हैं उस बुत की ख़ुद-सरी के

रानाइयों पे अपनी नाज़ाँ न हों बहारें

अंजाम-ए-ग़म निहाँ है आग़ाज़ में ख़ुशी के

हँसना था चार दिन का रोना है उम्र भर का

दस्तूर में निराले दुनिया-ए-आशिक़ी के

उम्र-ए-अज़ीज़ का जब अंजाम खुल चुका है

रोने से फ़ाएदा क्या बदले में अब हँसी के

हम ने रह-ए-वफ़ा में लुट कर क़दम क़दम पर

छीने हैं रहज़नों से अतवार रहज़नी के

जब तक न आज़माएँ मुश्किल है ये बताना

दुनिया में कौन 'रिफ़अत' क़ाबिल है दोस्ती के

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In Hindi By Famous Poet Rifat Sethi. is written by Rifat Sethi. Complete Poem in Hindi by Rifat Sethi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.