नौहा उन का नहीं गुज़र गए जो
ज़िंदगी की उदास राहों से
फेंक कर बोझ अपने काँधों का
नौहा उन का जो अब भी जीते हैं
दर्द को ज़िंदगी बनाए हुए
मरने वालों का बोझ उठाए हुए
Wasi Shah
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Habib Jalib
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(573) Peoples Rate This
ज़िंदगी तुझ से बिछड़ कर मैं जिया एक बरस
घर को अब दश्त-ए-कर्बला लिक्खूँ
चाँद वीरान है सदियों से मिरे दिल की तरह
शहर-ए-शोर-ओ-शर तन्हा घर के बाम-ओ-दर तन्हा
न फूल हूँ न सितारा हूँ और न शो'ला हूँ
गली गली मिरी वहशत लिए फिरे है मुझे
नज्म-ए-सहर
फिर फ़िक्र-ए-सुख़न मैं कर रहा हूँ
नौहा
बुझा बुझा के जलाता है दिल का शो'ला कौन
तजस्सुस
दौलत-ए-हर्फ़-ओ-बयाँ साथ लिए फिरते हैं