नज्म-ए-सहर
वक़्त-ए-सहर, ख़ामोश धुँदलका नाच रहा है सेहन-ए-जहाँ में
ताबिंदा, पुर-नूर सितारे, जगमग जगमग करते करते
हार चुके हैं अपनी हिम्मत, डूब चुके हैं बहर-ए-फ़लक में
तारीकी के तूफ़ानों में अपनी कश्ती खेते खेते
लेकिन इक बा-हिम्मत तारा अब भी आँखें खोल रहा है
अब भी जहाँ को देख रहा है अपनी मस्ताना नज़रों से
जैसे किसी तालाब में लचके कोई शगुफ़्ता फूल कँवल का
जैसे बेले की शाख़ों में दूर से एक शगूफ़ा चमके
वक़्त-ए-सहर, ख़ामोश धुँदलका एक सितारा काँप रहा है
जैसे कोई बोसीदा कश्ती तूफ़ानों में डोल रही हो
कोई दिया रौशन हो जैसे क़ब्रिस्तान में ताक़-ए-लहद पर
जिस की लौ अंजाम के डर से घटती हो और थर्राती हो
वक़्त-ए-सहर ख़ामोश धुँदलका एक सितारा काँप रहा है
रुख़ पर जिस के खेल रहा है अब भी तबस्सुम हल्का हल्का
वो आया इक नूर का धारा जल्वों की बूँदें बरसाता
जगमग जगमग करता करता डूब गया मासूम सितारा
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