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गली गली मिरी वहशत लिए फिरे है मुझे - रिफ़अत सरोश कविता - Darsaal

गली गली मिरी वहशत लिए फिरे है मुझे

गली गली मिरी वहशत लिए फिरे है मुझे

कि संग-ओ-ख़िश्त की लज़्ज़त लिए फिरे है मुझे

न कोई मंज़िल-ए-मक़्सूद है न राह-ए-तलब

भटकते रहने की आदत लिए फिरे है मुझे

न माल-ओ-ज़र की तमन्ना न ज़िंदगी की हवस

न जाने कौन सी क़ुव्वत लिए फिरे है मुझे

हरम से दैर तलक दैर से हरम की तरफ़

न जाने किस की अक़ीदत लिए फिरे है मुझे

ये मुफसिदों का जहाँ ये तज़ाद की दुनिया

बस एक हर्फ़-ए-मोहब्बत लिए फिरे है मुझे

मुझे किया मिरी फ़िक्र-ए-रसा ने आवारा

कि दर-ब-दर मिरी शोहरत लिए फिरे है मुझे

जो बस चले न उठूँ तेरे आस्ताने से

ये सर-फिरा जो है 'रिफ़अत' लिए फिरे है मुझे

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In Hindi By Famous Poet Rifat Sarosh. is written by Rifat Sarosh. Complete Poem in Hindi by Rifat Sarosh. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.