गली गली मिरी वहशत लिए फिरे है मुझे
गली गली मिरी वहशत लिए फिरे है मुझे
कि संग-ओ-ख़िश्त की लज़्ज़त लिए फिरे है मुझे
न कोई मंज़िल-ए-मक़्सूद है न राह-ए-तलब
भटकते रहने की आदत लिए फिरे है मुझे
न माल-ओ-ज़र की तमन्ना न ज़िंदगी की हवस
न जाने कौन सी क़ुव्वत लिए फिरे है मुझे
हरम से दैर तलक दैर से हरम की तरफ़
न जाने किस की अक़ीदत लिए फिरे है मुझे
ये मुफसिदों का जहाँ ये तज़ाद की दुनिया
बस एक हर्फ़-ए-मोहब्बत लिए फिरे है मुझे
मुझे किया मिरी फ़िक्र-ए-रसा ने आवारा
कि दर-ब-दर मिरी शोहरत लिए फिरे है मुझे
जो बस चले न उठूँ तेरे आस्ताने से
ये सर-फिरा जो है 'रिफ़अत' लिए फिरे है मुझे
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