एक बे-रंग से ग़ुबार में हूँ
एक बे-रंग से ग़ुबार में हूँ
तेरी आवाज़ के हिसार में हूँ
बे-ख़िज़ाँ है तसव्वुर-ए-हस्ती
मैं अभी आलम-ए-बहार में हूँ
मेरा हर फ़े'ल मुझ से पोशीदा
जाने मैं किस के इख़्तियार में हूँ
अभी तोड़ो न ये तिलिस्म-ए-वफ़ा
मैं अभी प्यार के ख़ुमार में हूँ
ज़िंदगी तुझ से कुछ नहीं शिकवा
अपने क़ातिल के इंतिज़ार में हूँ
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