पहली बरसात की घटा छाई
पहली बरसात की घटा छाई
आज खिड़की से कुछ हवा आई
अपनी कुटिया में रोज़-ए-मातम है
उन के कोठे पे रोज़-ए-शहनाई
लू के मौसम पे फ़त्ह पाएगी
इक न इक दिन ज़रूर पुर्वाई
उस की पाज़ेब की सदा सुन कर
गुनगुनाती हुई सबा आई
इक तरफ़ ख़ाक-ओ-ख़ून का आलम
इक तरफ़ ऐश में है दाराई
शब में जब उस को ख़्वाब में देखा
बढ़ गई सुब्ह मेरी बीनाई
(456) Peoples Rate This