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वो दिल कि था कभी सरसब्ज़ खेतियों की तरह - रियाज़ मजीद कविता - Darsaal

वो दिल कि था कभी सरसब्ज़ खेतियों की तरह

वो दिल कि था कभी सरसब्ज़ खेतियों की तरह

सुलग रहा है झुलसते हुए थलों की तरह

ये शे'र जिस की ज़मीं को भी मुझ से शिकवे हैं

रहेगा याद पुरानी मोहब्बतों की तरह

किसी जगह पे भी सय्याह दिल ठहर न सका

जहाँ की सैर को निकले मुसाफ़िरों की तरह

उतरती ज़ेहन में भी ख़ुश-गवार धूप कभी

शुरू-ए-गर्मा के खुलते हुए दिनों की तरह

लहू रुलाती है बे-वक़्त तंग करती है

है उस की याद भी बे-रुत की बारिशों की तरह

तुम्हारी चाह का अंजाम देखिए क्या हो

लगा के बैठे हैं दाव जुआरियों की तरह

ख़ुद अपने साए से भी काँप काँप उठता हूँ

मैं सहमा फिरता हूँ मफ़रूर मुलज़िमों की तरह

उस आँख में कोई बे-रंग सी कशिश थी 'रियाज़'

पुराने क़िलओं' में कुंदा इबारतों की तरह

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In Hindi By Famous Poet Riaz Majeed. is written by Riaz Majeed. Complete Poem in Hindi by Riaz Majeed. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.