उस चाँद को तुम दिल में छुपा क्यूँ नहीं लेते
उस चाँद को तुम दिल में छुपा क्यूँ नहीं लेते
इस प्यास की शिद्दत को बुझा क्यूँ नहीं लेते
गर प्यार की आतिश में सुलगने में मज़ा है
फिर इश्क़ में तुम ख़ुद को जला क्यूँ नहीं लेते
ये लाशा-ए-जाँ आएगा अब कौन उठाने
इस बोझ को काँधों पे उठा क्यूँ नहीं लेते
इस शहर में हैं लाख तबीबों की दूकानें
बीमार है गर दिल तो दवा क्यूँ नहीं लेते
है दिल में 'रियाज़' अपने छुपी दर्द-कहानी
रो-धो के ज़माने को सुना क्यूँ नहीं लेते
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