धूप को कुछ और जलना चाहिए
धूप को कुछ और जलना चाहिए
जिस्म क्या साया पिघलना चाहिए
चीटियाँ चलने लगी हैं पीठ में
अब तुम्हारा तीर चलना चाहिए
गोद सूनी हो चली है आँख की
अब तो कोई ख़्वाब पलना चाहिए
ग़म बयाँ हो प्यास का कुछ इस तरह
रेत से पानी निकलना चाहिए
हम बदन की बंदिशों से दूर हैं
रूह में तुम को भी ढलना चाहिए
अब ज़बाँ तक आ गईं है तल्ख़ियाँ
अब हमें फ़ौरन निकलना चाहिए
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