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धूप को कुछ और जलना चाहिए - रेनू नय्यर कविता - Darsaal

धूप को कुछ और जलना चाहिए

धूप को कुछ और जलना चाहिए

जिस्म का साया पिघलना चाहिए

चीटियाँ चलने लगी हैं पीठ में

अब तुम्हारा तीर चलना चाहिए

गोद सूनी हो चली है आँख की

अब तो कोई ख़्वाब पलना चाहिए

ग़म बयाँ हो प्यास का कुछ इस तरह

रेत से पानी निकलना चाहिए

बंदगी की लौ हो ऐसी जिस में कि

संग-ए-मरमर तक पिघलना चाहिए

हम बदन की बंदिशों से दूर हैं

रूह में तुम को भी ढलना चाहिए

अब ज़बाँ तक आ गईं है तल्ख़ियाँ

अब हमें फ़ौरन निकलना चाहिए

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In Hindi By Famous Poet Renu Nayyar. is written by Renu Nayyar. Complete Poem in Hindi by Renu Nayyar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.