कहानी ख़त्म हुई और ऐसी ख़त्म हुई
कि लोग रोने लगे तालियाँ बजाते हुए
Gulzar
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Habib Jalib
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Javed Akhtar
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सेल्फ़ी
मुझे ग़रज़ है सितारे न माहताब के साथ
सदाएँ देते हुए और ख़ाक उड़ाते हुए
मैं कार-आमद हूँ या बे-कार हूँ मैं
बैठे हैं चैन से कहीं जाना तो है नहीं
तेरे बिन घड़ियाँ गिनी हैं रात दिन
सर-ब-सर यार की मर्ज़ी पे फ़िदा हो जाना
ये जो मुझ पर निखार है साईं
शहर-बानो के लिए एक नज़्म
सुकूत-ए-शाम में गूँजी सदा उदासी की
ज़ियादा पास मत आना
यही दुआ है यही है सलाम इश्क़ ब-ख़ैर