सुकूत-ए-शाम में गूँजी सदा उदासी की
सुकूत-ए-शाम में गूँजी सदा उदासी की
कि है मज़ीद उदासी दवा उदासी की
बहुत शरीर था मैं और हँसता फिरता था
फिर इक फ़क़ीर ने दे दी दुआ उदासी की
उमूर-ए-दिल में किसी तीसरे का दख़्ल नहीं
यहाँ फ़क़त तिरी चलती है या उदासी की
चराग़-ए-दिल को ज़रा एहतियात से रखना
कि आज रात चलेगी हवा उदासी की
वो इम्तिज़ाज था ऐसा कि दंग थी हर आँख
जमाल-ए-यार ने पहनी क़बा उदासी की
इसी उमीद पे आँखें बरसती रहती हैं
कि एक दिन तो सुनेगा ख़ुदा उदासी की
शजर ने पूछा कि तुझ में ये किस की ख़ुशबू है
हवा-ए-शाम-ए-अलम ने कहा उदासी की
दिल-ए-फ़सुर्दा को मैं ने तो मार ही डाला
सो मैं तो ठीक हूँ अब तू सुना उदासी की
ज़रा सा छू लें तो घंटों दहकती रहती है
हमें तो मार गई ये अदा उदासी की
बहुत दिनों से मैं उस से नहीं मिला 'फ़ारिस'
कहीं से ख़ैर-ख़बर ले के आ उदासी की
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