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मैं ने तुम्हें चलना सिखाया था - रेहाना रूही कविता - Darsaal

मैं ने तुम्हें चलना सिखाया था

अभी जैसे ये कल की बात लगती है

कि तुम छोटे से गड्डे थे

तुम्हें चलना नहीं आता था

घुटनों घुटनों चलते थे

कभी कुर्सी कभी सोफा पकड़ कर जब खड़े होते

तो इस चलने की कोशिश में

तुम्हारे नन्हे-मुन्ने पाँव अक्सर डगमगा जाते

क़दम भी लड़खड़ा जाते

तो मैं उँगली पकड़ कर फिर तुम्हें चलना सिखाती

फिर तुम्हें अब्बू ने इक वॉकर ला दिया

अब तुम उड़े फिरते किसी के हाथ कब आते

फिर इक दिन सुब्ह जब सो कर उठी तो मैं ने देखा

कि तुम बिना वॉकर बिना कोई सहारे अपने पाँव पर खड़े हो

और चल रहे हो

फिर तुम यूँही चलते रहे चलते रहे चलते रहे

दिन महीने और महीने सालों में ढलते रहे

तुम यूँही चलते रहे

और चलते चलते एक दिन

आख़िर इतनी दूर जा निकले

मिरी आँखों से ओझल हो गए

मैं ने तुम्हें चलना सिखाया था!

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In Hindi By Famous Poet Rehana Roohi. is written by Rehana Roohi. Complete Poem in Hindi by Rehana Roohi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.