मसरूफ़ियत उसी की है फ़ुर्सत उसी की है
मसरूफ़ियत उसी की है फ़ुर्सत उसी की है
इस सरज़मीन-ए-दिल पे हुकूमत उसी की है
मिलता है वो भी तर्क-ए-तअल्लुक़ के बावजूद
मैं क्या करूँ कि मुझ को भी आदत उसी की है
जो उम्र उस के साथ गुज़ारी उसी की थी
बाक़ी जो बच गई है मसाफ़त उसी की है
होता है हर किसी पे उसी का गुमाँ मुझे
लगता है हर किसी में शबाहत उसी की है
लिक्खूँ तो उस के इश्क़ को लिखना है शाइरी
सोचूँ तो ये सुख़न भी इनायत उसी की है
दर-ए-आस्ताँ कोई हो ब-ज़ाहिर सर-ए-सुजूद
लेकिन पस-ए-सुजूद इबादत उसी की है
वो जिस के हक़ में झूटी गवाही भी मैं ने दी
'रूही' मिरे ख़िलाफ़ शहादत उसी की है
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