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कौन कहाँ तक जा सकता है - रेहाना रूही कविता - Darsaal

कौन कहाँ तक जा सकता है

कौन कहाँ तक जा सकता है

ये तो वक़्त बता सकता है

इश्क़ में वहशत का इक शोला

घर को आग लगा सकता है

जज़्बों की शिद्दत का सूरज

ज़ंजीरें पिघला सकता है

तेरी आमद का इक झोंका

उजड़ा शहर बसा सकता है

आईने में जुरअत हो तो

अक्स भी सूरत पा सकता है

आँखों में ठहरा इक मंज़र

राह में गर्द उड़ा सकता है

तुझ को पैहम सोचने वाला

ख़्वाब को हाथ लगा सकता है

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In Hindi By Famous Poet Rehana Roohi. is written by Rehana Roohi. Complete Poem in Hindi by Rehana Roohi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.