ताज़ियत की खोखली है रस्म जारी आज-कल

ताज़ियत की खोखली है रस्म जारी आज-कल

इस तरह से हो रही है ग़म-गुसारी आज-कल

लोग नंगे पाँव हैं और किर्चियाँ हैं फ़र्श पर

और इस पर मौत का है रक़्स जारी आज-कल

शौक़ है हम को तमाशा देखने का और यहाँ

रहनुमा भी मिल गए हैं कुछ मदारी आज-कल

अब निसाब-ए-इश्क़ में शामिल नहीं मेहर-ओ-वफ़ा

हो गए हैं ये मज़ामीं इख़्तियारी आज-कल

जीत पर उस का यक़ीं पुख़्ता हुआ ये देख कर

आ रही है नफ़रतों में पाएदारी आज-कल

ये कहा था मान से वो मान रखता है मिरा

हो रही है जा-ब-जा पर शर्मसारी आज-कल

मुद्दतों के बा'द वो पैकर हुआ है मेहरबाँ

है मगर परहेज़-गारी हम पे तारी आज-कल

बख़्त क्या जागे मिरे दुनिया शनासा हो गई

सब की मुझ से हो गई है रिश्तेदारी आज-कल

ज़िंदगी कमयाब होने का ख़सारा ये भी है

क़ातिलों में बढ़ गई बे-रोज़-गारी आज-कल

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In Hindi By Famous Poet Rehan Alvi. is written by Rehan Alvi. Complete Poem in Hindi by Rehan Alvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.