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हर आने वाले पल से डर रहा हूँ - रज़्ज़ाक़ अरशद कविता - Darsaal

हर आने वाले पल से डर रहा हूँ

हर आने वाले पल से डर रहा हूँ

किन अंदेशों में घिर कर रह गया हूँ

किसी प्यासी नदी की बद-दुआ हूँ

समुंदर था मगर सहरा हुआ हूँ

बस अब अंजाम क्या है ये बता दो

बहुत लम्बी कहानी हो गया हूँ

वही मेरे लिए अब अजनबी हैं

मैं जिन के साथ सदियों तक रहा हूँ

कोई अनहोनी हो जाएगी जैसे

मैं अब ऐसी ही बातें सोचता हूँ

खड़ी हो मौत दरवाज़े पे जैसे

मैं घर में हूँ मगर सहमा हुआ हूँ

अभी कुछ देर पहले चुप लगी थी

तुम्हें हमदर्द पा कर रो दिया हूँ

मैं कोई शहर हूँ सदियों पुराना

हज़ारों बार उजड़ा हूँ बसा हूँ

मिरा अब कोई मुस्तक़बिल नहीं है

मैं अब माज़ी में अपने जी रहा हूँ

मुझे शायद भुला पाए न दुनिया

मैं अपने अहद का इक हादसा हूँ

सलामत हूँ ब-ज़ाहिर लेकिन 'अरशद'

मैं अंदर से बहुत टूटा हुआ हूँ

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In Hindi By Famous Poet Razzaq Arshad. is written by Razzaq Arshad. Complete Poem in Hindi by Razzaq Arshad. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.