शहर अपना है मगर लोग कहाँ हैं अपने

शहर अपना है मगर लोग कहाँ हैं अपने

कहने सुनने को ज़माँ और मकाँ हैं अपने

ये दुआ फ़र्ज़ समझ कर मैं किए जाता हूँ

ख़ैर से ख़ुश रहें अहबाब जहाँ हैं अपने

कब अलग थी मिरी दुनिया से जो जन्नत छोटी

कोई अपना था वहाँ और न यहाँ हैं अपने

आइना मेज़ का अपनी कभी हिस्सा न बना

शहर में कहने को सब शीशा-गराँ हैं अपने

आज के सारे यक़ीं उन के लिए उन के लिए

रंग जो बदलें वो अस्बाब-ए-गुमाँ हैं अपने

अपने चेहरे की ख़बर जिन को नहीं है 'अफ़सर'

उन की आँखों पे सभी ऐब अयाँ हैं अपने

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In Hindi By Famous Poet Razzaq Afsar. is written by Razzaq Afsar. Complete Poem in Hindi by Razzaq Afsar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.