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हर दिन जिस पर फूल खिलें वो बे-मौसम की डाल नहीं मैं - रज़्ज़ाक़ अफ़सर कविता - Darsaal

हर दिन जिस पर फूल खिलें वो बे-मौसम की डाल नहीं मैं

हर दिन जिस पर फूल खिलें वो बे-मौसम की डाल नहीं मैं

साजे न साजे हर कंधे पर पड़ने वाली शाल नहीं मैं

मिट्टी का हूँ प्याला लेकिन प्यास में सब का हाथ बटाऊँ

जोड़ लें जिस में आरती झट से पीतल की वो थाल नहीं मैं

ख़ूब ख़िज़ाँ को इस का पता है हाल-ए-ज़बूँ भी मेरा जुदा है

दोश-ए-हवा पर उड़ने वाले पत्तों सा बेहाल नहीं मैं

मेरा मुक़द्दर हाथ में मेरे वक़्त से मेरे रिश्ते नाते

झूटी तसल्ली देने वाली कोई किताब-ए-फ़ाल नहीं मैं

बाद-ए-मुख़ालिफ़ लाख चले पर उड़ नहीं पाए रंगत मेरी

रंग-ब-रंग कैलन्डर पर छपने वाला साल नहीं मैं

फ़नकारो की सुन्नत हूँ 'अफ़सर' जो है दिल में वो है मुँह पर

फाँसने वाली चाल है जिस में मकड़ी का वो जाल नहीं मैं

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In Hindi By Famous Poet Razzaq Afsar. is written by Razzaq Afsar. Complete Poem in Hindi by Razzaq Afsar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.