इक सहीफ़ा नया उतरा है सुना है लोगो
मारना दोस्त का भी जिस में रवा है लोगो
Habib Jalib
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Javed Akhtar
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दिल तो है एक मगर दर्द के ख़ाने हैं बहुत
दिल के दर्द के कम होने का तन्हा कुछ सामान हुआ
जिस को तुम कहते हो ख़ुश-बख़्त सदा है मज़लूम