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दिल के दर्द के कम होने का तन्हा कुछ सामान हुआ - रज़िया फ़सीह अहमद कविता - Darsaal

दिल के दर्द के कम होने का तन्हा कुछ सामान हुआ

दिल के दर्द के कम होने का तन्हा कुछ सामान हुआ

हम भी अब कै दिन जी लेंगे इस का भी इम्कान हुआ

एक दिए की लौ ने सारा शहर जला कर ख़ाक किया

एक हवा का झोंका बन कर आँधी और तूफ़ान हुआ

आरज़ूओं की नीची साँस ने उस दर पर दस्तक दी

और जुनूँ का इक इक लम्हा मेरे घर मेहमान हुआ

वक़्त का कटना उस से पूछो हिज्र में जिस की गुज़री हो

एक इक लम्हा एक सदी था कब हम पर आसान हुआ

कोई किसी का मीत नहीं है दुनिया कहती आई है

हम ने जिस को अपना जाना वक़्त पे वो अंजान हुआ

इश्क़ उड़ानों का दुश्मन है क्या उस को मालूम न था

दिल का पंछी क़ैद में आ कर क्यूँ इतना हैरान हुआ

तन्हा उन की गुल-अफ़्शानी कुछ न पूछो कैसी है

जब भी हज़रत-ए-वाइज़ बोले सब का जी हलकान हुआ

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In Hindi By Famous Poet Raziya Faseeh Ahmad. is written by Raziya Faseeh Ahmad. Complete Poem in Hindi by Raziya Faseeh Ahmad. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.