दिल के दर्द के कम होने का तन्हा कुछ सामान हुआ
दिल के दर्द के कम होने का तन्हा कुछ सामान हुआ
हम भी अब कै दिन जी लेंगे इस का भी इम्कान हुआ
एक दिए की लौ ने सारा शहर जला कर ख़ाक किया
एक हवा का झोंका बन कर आँधी और तूफ़ान हुआ
आरज़ूओं की नीची साँस ने उस दर पर दस्तक दी
और जुनूँ का इक इक लम्हा मेरे घर मेहमान हुआ
वक़्त का कटना उस से पूछो हिज्र में जिस की गुज़री हो
एक इक लम्हा एक सदी था कब हम पर आसान हुआ
कोई किसी का मीत नहीं है दुनिया कहती आई है
हम ने जिस को अपना जाना वक़्त पे वो अंजान हुआ
इश्क़ उड़ानों का दुश्मन है क्या उस को मालूम न था
दिल का पंछी क़ैद में आ कर क्यूँ इतना हैरान हुआ
तन्हा उन की गुल-अफ़्शानी कुछ न पूछो कैसी है
जब भी हज़रत-ए-वाइज़ बोले सब का जी हलकान हुआ
(535) Peoples Rate This