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तुम किसी तौर किसी शक्ल नहीं कर सकते - राज़िक़ अंसारी कविता - Darsaal

तुम किसी तौर किसी शक्ल नहीं कर सकते

तुम किसी तौर किसी शक्ल नहीं कर सकते

इस ज़मीं से मुझे बे-दख़्ल नहीं कर सकते

ठीक है आप मिरी जान तो ले सकते हैं

मेरी आवाज़ मगर क़त्ल नहीं कर सकते

तुझ को नुक़सान तो पहुुँचाना बहुत दूर की बात

तेरी तस्वीर को बद-शक्ल नहीं कर सकते

शेर कहने का सलीक़ा है बहुत बअ'द की बात

ठीक से हम तो अभी नक़्ल नहीं कर सकते

ऐसे हालात में हम दिल को तलब करते हैं

फ़ैसला रख के जहाँ अक़्ल नहीं कर सकते

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In Hindi By Famous Poet Raziq Ansari. is written by Raziq Ansari. Complete Poem in Hindi by Raziq Ansari. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.