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आँसू अपनी चश्म-ए-तर से निकलें तो - राज़िक़ अंसारी कविता - Darsaal

आँसू अपनी चश्म-ए-तर से निकलें तो

आँसू अपनी चश्म-ए-तर से निकलें तो

ताज़ा-दम हो जाएँ घर से निकलें तो

बीमारों को थोड़ा सा आराम मिले

बाहर दस्त-ए-चारा-गर से निकलें तो

सच्चाई से पर्दा भी हट सकता है

अख़बारों में छपी ख़बर से निकलें तो

ना-मुम्किन है वापस लौटें ख़ाली हाथ

चाँद पकड़ने लेकिन घर से निकलें तो

मंज़र में किरदार हमारा भी आ जाए

शर्त है पहले पस-मंज़र से निकलें तो

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In Hindi By Famous Poet Raziq Ansari. is written by Raziq Ansari. Complete Poem in Hindi by Raziq Ansari. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.