तुम्हीं बताओ वो कौन है जो हर एक लम्हा सता रहा है
तुम्हीं बताओ वो कौन है जो हर एक लम्हा सता रहा है
न नींद रातों को आ रही है न चैन दिन को ही आ रहा है
ये अश्क दामन भिगो रहे हैं ये आँखें सूजी हुई हैं मेरी
मैं एक जल्वे की उस के तालिब मगर वो पर्दे गिरा रहा है
तवाफ़-ए-काबा को देख तो ले तड़प रहा है वजूद मेरा
न पाँव अब मेरे उठ रहे हैं न सामने घर वो आ रहा है
मैं एक मजबूर ना-तवाँ सी ज़ईफ़ बंदी हूँ उस से तालिब
तमाशा चुप-चाप देखता है कहाँ तरस मुझ पे खा रहा है
तुझे उसी की क़सम है मौला है तुझ को महबूब दो जहाँ में
वो अपने जल्वे दिखा दे मुझ को जो तू नज़र से छुपा रहा है
हर एक तदबीर बे-असर है न जी रही हूँ न मर रही हूँ
जुनून-ए-इश्क़-ए-ख़ुदा ही लोगो ये हाल मेरा बना रहा है
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