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मैं मुब्तला-ए-इश्क़ हूँ मुझ को पता न था - रज़िया हलीम जंग कविता - Darsaal

मैं मुब्तला-ए-इश्क़ हूँ मुझ को पता न था

मैं मुब्तला-ए-इश्क़ हूँ मुझ को पता न था

जब तक किसी ने हाल ये मेरा किया न था

पाया है जब से तुझ को है तकमील का सुरूर

मैं थी अधूरी तू मुझे जब तक मिला न था

अल्लाह तेरे इश्क़ में हूँ हाल से बेहाल

तब तक बड़े मज़े में थी जब दिल लगा न था

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In Hindi By Famous Poet Razia Halim Jang. is written by Razia Halim Jang. Complete Poem in Hindi by Razia Halim Jang. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.