मैं मुब्तला-ए-इश्क़ हूँ मुझ को पता न था
जब तक किसी ने हाल ये मेरा किया न था
पाया है जब से तुझ को है तकमील का सुरूर
मैं थी अधूरी तू मुझे जब तक मिला न था
अल्लाह तेरे इश्क़ में हूँ हाल से बेहाल
तब तक बड़े मज़े में थी जब दिल लगा न था
Faiz Ahmad Faiz
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दिल की हालत बिगड़ रही है क्यूँ
बयाबाँ हो कि सहरा हो मुझे तेरा सहारा हो
कितने नायाब थे लम्हे जो वहाँ पर गुज़रे
तुम्हीं बताओ वो कौन है जो हर एक लम्हा सता रहा है