दिल की हालत बिगड़ रही है क्यूँ
हर नफ़स मुझ को बे-कली है क्यूँ
दिल लगाता है बस सदा तेरी
बे-क़रारी ये बढ़ रही है क्यूँ
उस के कूचे में उम्र गुज़री फिर
कूचा-ए-यार अजनबी है क्यूँ
जिस्म ज़ंजीर हो भी सकता है
रूह आज़ाद है रुकी है क्यूँ
अब ये समझी हूँ जब बनी जाँ पर
मरकज़-ए-जाँ तिरी गली है क्यूँ