ये ज़ुल्फ़-ए-यार भी क्या बिजलियों का झुरमुट है
ख़ुदाया ख़ैर हो अब मेरे आशियाने की
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जोगी
शब ज़रा देर से गुज़रेगी न घबरा ऐ दिल
और कितने अभी सितम होंगे
काश पड़ते न इन अज़ाबों में
जगह बची ही नहीं दिल पे चोट खाने की
कोह-ए-ग़म इतना गराँ इतना गराँ है अब के
तमाम रात तिरा इंतिज़ार होता रहा
बुढ़ापा
चुपके से मुझ को आज कोई ये बता गया
दर्द-ओ-ग़म सब सुनाने बैठे हैं
अब भी उसी तरह से इसे इंतिज़ार है