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बुढ़ापा - रज़ी रज़ीउद्दीन कविता - Darsaal

बुढ़ापा

यूँ गुमाँ हो रहा है मेरे नदीम

जैसे अब गुल्सिताँ में रंग नहीं

जैसे अब दिल में कुछ उमंग नहीं

आसमान बदलियों की ज़द में है

ज़र्द-आलूद हैं फ़ज़ाएँ भी

सुर्ख़ सूरज की कपकपाती किरन

छू रही है उफ़ुक़ के साए को

फैलती जा रही है शब की लकीर

सेहन-ए-ज़िंदाँ के चार-पायों पर

डूबती मेरी ख़्वाबीदा आँखें

देखती जाती हैं पुराने ख़्वाब

गुज़रे अय्याम के अधूरे ख़्वाब

ज़िंदगी से भरे सिसकते ख़्वाब

दस्त-ओ-बाज़ू हैं कितने पज़-मुर्दा

नब्ज़-ए-हस्ती है कितनी आहिस्ता

एक दिल है कि धड़के जाए है

जैसे गिर्दाब ता-सफ़ीना कोई

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In Hindi By Famous Poet Razi Raziuddin. is written by Razi Raziuddin. Complete Poem in Hindi by Razi Raziuddin. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.