शब-ए-दराज़ तुझे कुछ ख़बर गई कि नहीं
सहर क़रीब से छू कर गुज़र गई कि नहीं
चमन में जाओ ज़रा और फिर बताओ हमें
गुलों के चेहरे से ज़र्दी उतर गई कि नहीं
तुम्हारे शहर में क्यूँ आज हू का आलम है
सबा इधर से गुज़र कर उधर गई कि नहीं
पता करो मिरे मा'शूक़ की गली जा कर
बहार भी वहीं जा कर ठहर गई कि नहीं