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कोह-ए-ग़म इतना गराँ इतना गराँ है अब के - रज़ी रज़ीउद्दीन कविता - Darsaal

कोह-ए-ग़म इतना गराँ इतना गराँ है अब के

कोह-ए-ग़म इतना गराँ इतना गराँ है अब के

है कहाँ तीशा-गराँ आह-ए-गराँ है अब के

मय-कशों इतना न पी जाओ कि ग़म डूब जाए

फिर न फट जाए ये आतिश जो फ़शाँ है अब के

तंग-दामान ये दुनिया-ए-सितम ज़ोर-ए-अलम

बढ़ता जाए है रवाँ और दवाँ है अब के

चश्मा-ए-नाब न बढ़ कर जुनूँ सैलाब बने

बह न जाए कि ये मिट्टी का मकाँ है अब के

हर तरफ़ फैलते बढ़ते हुए ये ज़ीस्त के हाथ

बहर-ए-ज़ुल्मात में एक कूज़ा-ए-जाँ है अब के

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In Hindi By Famous Poet Razi Raziuddin. is written by Razi Raziuddin. Complete Poem in Hindi by Razi Raziuddin. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.