दर्द-ओ-ग़म सब सुनाने बैठे हैं
छेड़ अपने फ़साने बैठे हैं
आशियाँ को जला के जी न भरा
अब वो हम को जलाने बैठे हैं
तुम न थे तो यहाँ पे कोई न था
आज कितने दिवाने बैठे हैं
इस फ़क़ीरी की पादशाही तो देख
फ़र्श को अर्श माने बैठे हैं
आस्ताना तिरा ख़ुदा का घर
और हम आज़माने बैठे हैं