चुपके से मुझ को आज कोई ये बता गया
कल रात मैं भी उस की ख़यालों में आ गया
जैसे कि खिल उठे कोई जाती बहार में
मुर्दा पड़ा था मैं मुझे छू कर जिला दिया
इक रौशनी में डूबे हुए थे मिरे चराग़
वो वस्ल के लिए मिरे पहलू में आ गया
मुद्दत के बा'द नींद की लज़्ज़त न पूछिए
नश्शा चढ़ा हुआ था सो चढ़ता चला गया