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अपने मेहवर से जब उतर जाऊँ - रज़ी रज़ीउद्दीन कविता - Darsaal

अपने मेहवर से जब उतर जाऊँ

अपने मेहवर से जब उतर जाऊँ

फूल की तरह फिर बिखर जाऊँ

लौट फिर आऊँ कैसे मेहवर पर

कोई बतलाओ क्या मैं कर जाऊँ

जाने क्या कह रही है दुनिया अब

पहले कहती थी क्यूँ न मर जाऊँ

मुझ से हरगिज़ से न हो सकेगा कभी

ख़ुद को औरों के जैसा कर जाऊँ

डूब जाऊँ भँवर के साथ कहीं

लहर के साथ फिर उभर जाऊँ

लौट आया तो हूँ मैं मेहवर पर

अब ये ख़्वाहिश है फिर बिखर जाऊँ

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In Hindi By Famous Poet Razi Raziuddin. is written by Razi Raziuddin. Complete Poem in Hindi by Razi Raziuddin. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.